रुनक झुनक यूँ जो तुम्हें ठुमकते हुए देखती हूँ,
बस इतना ही सोचती हूँ,
नीची नज़रे संग एक डर,
छोटे से एक दायरे में सिमट कर,
बंधे पैरों से क्यों नाचती हो?
देखने को तो पूरा एक आकाश पड़ा है,
पर उड़ने के कुछ सपने बुनकर
फिर क्यों सहमते हुए,
बस छज्जे से ही नभ को झांकती हो?
रस्ते तो बहुत से याद है तुम्हें,
पर छोड़ कर चौड़ी हर सड़क
सकरी एक पगडण्डी पर,
संग सखियों, सांझ से पहले,
झट पट घर क्यों भागती हो?
देख के तुमको ऐसे,
बस इतना ही सोचती हूँ,
एक दिन तो तुम,
उठाकर नज़रे, तोड़कर दायरा,
बस नाचना|
बुनकर सपने, छोड़कर छज्जा
बस ताकना|
छोड़कर पगडण्डी, चौड़ी सड़को पर,
बस भागना|
उस दिन तुम,
सोचना, देखना, हँसना, खिलखिलाना|
और वो सब करना हकीकत में,
जो अब तक तुम करती रही हो,
बंधी अपनी कल्पनाओं में|
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