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चौथ से पहले

उजले तुम्हारे चेहरे पर,

गुनगुनी सी एक मुस्कान जो है|

होगी भी भला,

कल जो तुम्हें सब ढूंढेगें|


साँझ होते ही छत, सड़क खिड़की से,

तुम्हारी आहट भर को ताकेंगे |

और यूं जो तुम शरमाते निकल आये,

आड़ में तुम्हारी दुआये,

किसी और के लिए माँगेगे|


हर तरफ़ ये रौनके,

औरतों का साज श्रिन्गार,

बाज़ारो में भर के खारीदार

सोचते हो, तुम्हारे लिए है|

पर ईद के रोज़ भी ऐसा हुआ था|


फ़िर भी तुम कल आना इतराते हुए,

लोगों की फ़र्माइशो पर मुस्काते हुए,

सोच के, तुम्हारे लिए है सब|

और चौथ के अगले रोज़,

भूल के तुमको जब

व्यस्त सब हो जाएंगे|


मिलूंगी तुम्हें तॉकते हुए,

मैं उसी मुडेंर पर|

जहाँ आज बैठी हूँ,

चौथ से पहले|

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