हां, याद आती है मुझे तुम्हारी, पर उस याद का मैं कुछ कर नहीं सकती। मगर देखो ना वो याद मुझे कितना कुछ कर जाती है। कभी ख़्वाब का रूप ले लेती है, और मेरी नींद में तुमसे मिलवा लाती है। पता भी है तुम्हें, तीन पहर लग जाते हैं मुझे यथार्थ में वापिस आने में! दिन की व्यस्तताओं में, कहीं ऑटो में बजते गाने पर कभी याद आ जाती है तुम्हारी। और तुम्हारी प्लेलिस्ट के वो सारे गानों की धुन सुनाई पड़ने लगती है। बस फिर क्या बैठ जाती हूं मैं, फुर्सती में छोड़ के अपने तमाम काम! कभी तेज़ हवा में उड़ती बारिश की बूंदे, याद दिला जाती है मुझे तुम्हारे पास होने का। सहम और खुशी का वो सांझा एहसास सिहरन दे जाता है मुझे। और बिना परवाह किए भीगने की, दौड़ पड़ती हूं मैं उस हवा के संग। ऐसे ही दिन के तमाम पलों में, बिना ध्यान किए तुम्हारी याद ना जाने क्यों दस्तक दे जाती है मुझे। पर देखो ना, उस याद का मैं कुछ कर नहीं सकती। तुम्हें बता नहीं सकती, तुम तक आ नहीं सकती। और एक ये याद है कि कभी ख़्वाब, कभी संगीत, कभी महक, तो कभी ठिठुरन बनकर तुम्हारी उपस्थिति दर्ज़ करा ही जाती है मुझे।
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