नहीं थकता प्रेम,
प्रेम करने से।
वैसे ही जैसे नहीं थकती माँ
चिंता करने से।
अस्वीकारता नहीं थकती
स्वीकार ना करने से।
या नहीं थकती अनुपस्थिति
उपस्थिति का इंतजार करने से।
यूं जो थक जाते सब,
तो मौन को शब्द कौन देता
उम्मीद को सब्र कौन देता
पतझड़ को बसंत कौन देता
प्रेम को प्रेम कौन देता?
न तुम देते, न मैं देती
तभी तो,
नहीं थकता प्रेम,
प्रेम करने से!
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