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हमने कभी एक दूसरे के नाम नहीं रखे

हमने कभी एक दूसरे के नाम नहीं रखे

अक्सर स्नेह की अभिव्यक्ति एक नाम दे जाती है| प्रेम में लोग एक दूसरे के नाम रख देते हैं| बेहद व्यक्तिगत नाम| वो नाम जो उनके सम्बंध और प्रेम की भाषा का पहला शब्द होता है| हमने ऐसा कभी नहीं किया| पाँच अक्षरों का मेरा नाम थोड़ा लम्बा था, पर वह मुझे वही बुलाता| सात अक्षरों का उसका नाम, और भी लम्बा था, पर मैं उसे वही बुलाती| नाम रखने की ज़रूरत नहीं थी, या नाम रखने की सहूलियत नहीं थी| इस बात पर हमने कभी गौर नहीं किया| वो जो हमारे नाम थे, वो काफ़ी थे हम दोने के लिए| एक लम्बी क़तार थी लोगों की जो मेरा नाम ग़लत पुकारती रहती| मैंने तो छोड़ दिया था लोगों को सही नाम बताना| पर वो सामने वाले को मेरे नाम का सही उच्चारण बताते बताते कभी नहीं थकता था| शायद उसे किसी का मेरे नाम से छेड़-छाड़ करना पसंद नहीं था| वैसे देखें तो हमारे संवादों में कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी नाम की| हमारी बातें बस यूँही हो जाया करती थी| भीड़ में भी वो समझ जाया करता था की मेरा वह सवाल, मेरी वह बात उसी के लिए है| कितनी दफ़े हम अपनी बात, "सुनो" से शुरू किया करते| हमारे लिए वह एक आम शब्द था|

हाँ, कभी कोई और सुनकर असहज भी हुआ होगा, पर मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया| शायद मुझे कभी सुध ही नहीं रही उसे कोई नाम देने की| मेरे लिए उसकी छवि उसके नाम से ही थी| वही आधार था उसे जानने का| और बात करें उसकी, उसने प्रेम में कयी लोगों को कुछ नाम दिए| वो उनके नाम का आख़री अक्षर तोड़ कर उसको घुमा देता| 'उ' की मात्रा लगा देता था शायद| मेरे नाम में ऐसी कोई मात्रा की गुंजाइश ना थी| और हाँ हम में प्रेम थोड़ी था|

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. प्रेम में अक्सर मैंने देखा है लोगों को एक दूसरे के कुछ व्यक्तिगत नाम रखते हुए| पर हमने कभी एक दूसरे के नाम नहीं रखे| या हमने शायद कभी एक दूसरे से प्रेम नहीं किया|



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