गाड़ी की खिड़की खुलते ही हवा का एक झोका सुबह की दस्तक दे जाता है |
चीड़ के जंगलों से गुजरती राह पर,
कभी कभी कोहरा गालों को छूता चला जाता है |
और फिर वही मौसम आने को हो जाता है |
जब नवंबर के महिने में,
पहाड़ो पर थोड़ी सी आयी गर्मी ने खुद को समेटना शुरू कर दिया होता है |
बीते मौसम की बारिश से सड़क पर कुछ नए गड्ढे बनते है,
कहीं पहाड़ के कुछ टूटे टूकड़े नीचे सड़क तक पहुँच जाते हैं |
अब बादल घर की खिड़की तक नहीं आते,
पर दूर के पहाड़ो को कभी ढकते कभी उघारा करते हैं |
फिर वही मौसम, आने को हो जाता है |
जब सर्दी पूरी तरह से अपने पट खोलने को आतुर हो जाती है |
और हवा में भीनी ठंडक,
सुबह की गुनगुनी धूप को और गुदगुदा बनाती है |
सेब के बागों में अब चहचहाती चिड़िया संग बच्चे ताका झांकी करने लगते है,
एक फल के टपकते ही, झट उस पर लपकते हैं |
छतो पर रजाई गद्दे और राजमा सुखाने का,
फिर वही मौसम, आने को हो जाता है |
बुग्यालों को एक बार फिर खाली होने का,
पहाड़ो से मैदानी इलाको पर बस जाने का,
और गहरी ठण्ड में अंगीठी सेकना शुरू हो जाता है |
सब के लिए फिर कुछ नया लाने का,
फिर वही मौसम, आने को हो जाता है |
और मेरे लिए,
एक किस्से के ख़त्म होने का,
उसके उठ कर चले जाने का,
फिर वही मौसम, आने को हो जाता है |
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