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जन्मदिन पर तुम्हारे।

तड़के सुबह उठकर

कोहरे की चाॅक से

बादलों की स्लेट पर

एक दुआ भेजी थी।


जो थोड़ा दिन चढ़ा

चूल्हे की आंच पर,

देर तक भून कर

थोड़ा हलवा बनाया था।


सांझ जो हुई तो,

गुलाबी रोशनी के आकाश से

कुछ टुकड़े तोड़ के

एक मफलर बुना था।


ना जाने क्यों ना पहुंची तुम तक,

तड़के सुबह की दुआ

हलवे की खुश्बू

और मफ़लर की गर्माहट।


पर,

किया सब कुछ

कल्पनाओं के शहर में

जन्मदिन पर तुम्हारे।



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