top of page
Home: Welcome
Home: Blog2

Subscribe Form

Stay up to date

  • instagram

©2019 by Pahadan.

Home: Subscribe
  • Writer's picturePahadan

कुछ कहते नहीं


तुम अब कुछ कहते नहीं

पर गुम होती तुम्हारी कविताओं के अल्फ़ाज़

सड़क पार,

मैंने उस पेड़ पर बने घोंसले में रखे देखें है


बोलूँ अब मैं इस हवा को,

थोड़ा ज़ोर चले

.

.

.

फ़िर उड़कर तुम्हारे वो शब्द

मेरी छत पर भी गिरें


कुछ को बटोर कर

और कुछ मैं अपने जोड़कर

तुम्हारी कही बातें

अपनी लिपि में लिख लूँगी


अगर होंगे उनमें कुछ प्रश्न भी

तो तुम्हारे मन के उत्तर

बना के गठरी

उसी घोंसले पर रख दूँगी !


पर हाँ,

शब्दों का ये कारोबार

होगा सब मन ही मन में

क्योंकिं असल में तो

तुम अब कुछ कहते नहीं!




0 comments

Comments


Home: Contact
bottom of page