मेरे कहने पर बड़े सारे काम किए तुमने,
इस दफ़े एक और ज़रा कर दो |
एक बार प्रेम परिभाषित किया था तुमने,
इस रोज़ ज़रा दोस्ती कर दो|
जो न बदले वो सुबह और सांझ में,
जो न बदले ज़रुरत और आराम में |
और यूँ जो अलग दिखना हो इसको,
अकेले और भीड़ में,
तो चलो इसका एक दायरा विभाजित कर दो |
जो सोचा होगा तुमने,
क्या कहना होता होगा बातों में,
क्या रखना होता होगा ख़ामोशी में|
तो इन सब का समय और दिन,
ज़रा स्थापित कर दो|
मत रखना इसे सबसे ऊपर कहीं सजा के
न देना इसको कोई नाम ज़रा |
और जो ना तुम ये कुछ कर पाये,
तो धीमें से इस डोर को
तुम बस खंडित कर दो |
एक बार प्रेम परिभाषित किया था तुमने,
इस रोज़ ज़रा दोस्ती कर दो |
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